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छठ का त्योहार



 भारत में जलाशयों के किनारों का सरोकार कई त्योहारों से जुड़ा हुआ है | मुहूर्त स्नान, मूर्ति विसर्जन जैसे अवसरों पर इन जलाशयों ने धार्मिक क्रियाकलापों में अह्म भूमिका निभाई है | ऐसा ही पर्व है छठ का त्योहार जिससे इन जलाशयों की रौनक और बढ़ी है | पिछले कई सालों से इस रौनक में इजाफ़ा हुआ है | कल बीती हुई शाम और आज सुबह, उत्तर भारत में जहाँ भी जलाशय हैं ; छोटा सा तालाब, झील, पोखर, नदी हैं वहाँ बहुत बड़ी तादाद में सूरज को नमन करते हुए लोग दिखे | यह छठ का त्योहार है जिसे बिहार और भारत के पूर्वी प्रान्त में बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता हैदुनिया सिर्फ उगते हुए सूरज को सलाम करती है वहीँ छठ पूजा डूबते हुए सूरज और उगते हुए सूरज दोनों को सलाम करती है |  

दरअसल जिसे हम अक्टूबर और नवम्बर के नाम से पहचानने के आदि हैं, बरसात बाद के वो महीने मन और मौसम दोनों  लिहाज़ से उल्लास के होते हैं | गर्मी बीत चुकी होती है, सर्दी की खुनक रही होती है | घर आँगन खेत और खलिहान, धान, दाल और गन्ने से भरे होते हैं | ऐसे में ये अन्न का भी त्योहार है, जल का भी और रोशनी का भी | ऐसा त्योहार जो घर बैठ कर नहीं होता, मिल जुलकर सभ्यता के छोटे छोटे घाटों पे होता है | शुरुआत दो दिन पहले खड़ना से होती है, इस दिन घरों में खीर बनती है और पूरा महोल्ला बिना किसी न्यौते के इसमें हिस्सा बटाता है | फिर ठेकुए का ख़ास प्रसाद बनता है, जो छठ की अलग पहचान है | दूसरा दिन डूबते हुए सूरज का होता है और तीसरी सुबह सर्दियों का आगाज़ करती है, दिवाली के बचे हुए पटाखे जलाये जाते हैं और साफ़-समतल किये गए जलाशयों के जगमाते घाट रौनक बढ़ाते हैंइन सबको जोड़ते हैं, छठ के वो गीत जिनकी अपनी ही लय होती है 

   बीस साल पहले तक यह त्योहार सिर्फ बिहार और झारखण्ड तक सिमटा हुआ था लेकिन अब दिल्ली, मुंबई और उत्तर प्रदेश में भी छठ मनाया जाता है | दरअसल इन बीस सालों में झारखण्ड और बिहार छोड़ कर लोगों ने देश के दूसरे हिस्सों में घर बनाये हैं, जहाँ गए वहाँ अपने तीज़-त्योहार ले गए और यह प्रक्रिया दोतरफ़ा रहीं है | गुजरात के नवरात्रों के गरबे अब भारत के दूसरे प्रान्तों में भी दिखने लगे हैं, करवा-चौथ सिर्फ दिल्ली और पंजाब का त्योहार नहीं रह गया है अब उसकी एक अखिल भारतीय पहचान है और गणेश चतुर्थी सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है | छठ भी इसी सांस्कृतिक लेनदेन का हिस्सा है जिससे कभी कभार कुंठा की मारे, ठाकरे जैसे कुटुंब समझ नहीं पाते | सभी को इस पावन पर्व की शुभकामनाएं |    

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